आचमन की पद्धति
आचमनक करने से रोगनाश...
प्रत्येक कार्यमें आचमनका विधान है।
आचमनसे हम केवल अपनी ही शुद्धि नहीं करते,
अपितु ब्रह्मासे लेकर तृणतकको तृप्त कर देते हैं।
आचमन न करनेपर हमारे समस्त कृत्य व्यर्थ हो जाते हैं।
अतः शौचके बाद भी आचमनका विधान है।
शिखा बाँधकर, उपवीती होकर और बैठकर तीन बार आचमन करना चाहिये।
हाथ घुटनोंके भीतर रखे ।
दक्षिण और पश्चिमकी ओर मुख करके आचमन न करे....
आचमनके लिये जलकी मात्रा
जल इतना ले कि ब्राह्मणके हृदयतक, क्षत्रियके कण्ठतक, वैश्यके तालुतक और शूद्र तथा महिलाके जीभतक पहुँच जाय ।
कनिष्ठिका और अँगूठेको अलग कर ले। ब्राह्मतीर्थसे निम्नलिखित एक-एक मन्त्र बोलते हुए आचमन करे,
जिसमें आवाज न हो। आचमनके समय बायें हाथकी तर्जनीसे दायें हाथके
जलका स्पर्श कर ले तो सोमपानका फल मिलता है।
ॐ केशवाय नमः । ॐ नारायणाय नमः । ॐ माधवाय नमः ।
आचमनके बाद अँगूठेके मूल भागसे होठोंको दो बार पोंछकर 'ॐ हषीकेशाय नमः' बोलकर हाथ धो ले।
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